तनाव का प्रभाव नहीं निदान हो

अक्सर परिजन शिकायत करते हैं कि परिवार के फलां सदस्य के तनाव का असर सब पर पड़ रहा है। यह शिकायत तो उस इंसान को करनी चाहिए, जो तनाव से गुज़र रहा है। समझिए कैसे।

हम सबके पास समस्याओं की एक विस्तृत सूची है। किसी की आय ज़रूरत से कम है, तो किसी को भविष्य के लिए बचत के रास्ते नहीं सूझ रहे, कोई किसी बीमारी का तनाव पाले है, तो कहीं पढ़ाई के बोझ से दबे बच्चे अपने भविष्य और अभिभावकों के सपनों को पूरा करने को लेकर चिंतित हैं। हम एक परिवार में रहते हैं। जब किसी एक सदस्य को तनाव होता है तो परिवार में शामिल सभी लोगों को इसका पता चल जाता है। आख़िर घर के हर व्यक्ति के रंग-ढंग से सब परिचित होते हैं। समझने लायक़ यह है कि अक्सर परेशान व्यक्ति बात करने या समस्या की जड़ तक पहुंचने में असफल रहता है। तनावग्रस्त व्यक्ति का व्यवहार अजीब हो जाता है।

ऐसे में, घर-परिवार व दोस्त अगर शिकायत करने लगें कि इस व्यक्ति के व्यवहार के कारण हमें परेशानी हो रही है, तो यह अपनी ज़िम्मेदारी से भागना कहा जाएगा। अगर कोई क़रीबी व्यक्ति तनाव में है तो उसके व्यवहार पर हंगामा करके माहौल को तनावग्रस्त करने के बजाय, इस स्थिति से घर-परिवेश को बचाना चाहिए।

व्यक्ति तनाव में है, ऐसे समझें…

चिड़चिड़ाना… जब कोई व्यक्ति तनाव में होगा तो वो छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ जाएगा। उसे हर बात बुरी लगेगी और उसका व्यवहार रूखा होगा।

काम प्रभावित होगा… प्रदर्शन में एकदम से बदलाव आता है। स्कूल, दफ़्तर या घर के काम पर असर पड़ने लगता है। व्यवहार को लेकर नई चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, लोगों से संबंध ख़राब होने लगते हैं।

अकेलापन… प्रभावित व्यक्ति गुमसुम भी हो सकता है। हो सकता है, लोगों से दूर रहने लगे। बात करने से कतराए। शून्य में ताकते हुए अलग-थलग रहना पसंद करे।

स्वास्थ्य पर असर… तनाव के कारण व्यक्ति की ऊर्जा कम होने लगती है और वह हमेशा बीमार रहता है। वह शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ रहने लगता है।

झगड़ा होगा… किसी विषय को लेकर झगड़ा हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर आपने पीड़ित शख़्स का कोई सामान इस्तेमाल कर लिया तो वो उस पर झगड़ना शुरू कर देगा। इससे परिवार के सदस्यों के बीच स्थायी झगड़ा या मनमुटाव हो सकता है।

बात करना ही एकमात्र हल है…

अगर परिवार में किसी सदस्य का व्यवहार एकाएक रूखा या गुमसुम-सा हो गया है तो उस पर नाराज़ होने के बजाय उससे बात करें। उसे कहां समस्या है और वो क्या सोच रहा है, जानने की कोशिश करें। उसे विश्वास दिलाना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि उसकी परेशानी का सबको अहसास है और सब उसकी मदद करना चाहते हैं।

बात को गंभीरता से लें…

अगर शख़्स आपके पूछने पर अपनी समस्या बताता है तो हो सकता है आपको वह तनाव लेने वाली बात न लगे। अगर आप उसको सुनकर कहते हैं कि ‘यह भी कोई तनाव लेने वाली बात है!’ तो उसे लगेगा कि आप उसकी भावनाओं को समझ नहीं पा रहे हैं। शायद आपके लिए वह समस्या उतनी बड़ी नहीं होगी, लेकिन ऐसा जताने के बजाय उसे इस मुश्किल से निकलने में मदद करें। उसके साथ हल ढूंढें।

आप हैं, विश्वास दिलाएं…

किसी व्यक्ति को तनाव से निकालने के लिए उसे विश्वास दिलाना ज़रूरी है कि आप उसे सुन रहे हैं और उसकी समस्या को हल भी करेंगे। एक बार विश्वास होने पर वो आप से खुलकर बात कर सकेगा। परिवार का माहौल भी ऐसा ही होना चाहिए कि गर किसी को समस्या है तो वो बेझिझक अपनी बात रख सके।

बातों को नज़रअंदाज़ न करें…

अगर व्यक्ति अपनी समस्या आपको बताता है और आप उसे सुनकर नज़रअंदाज़ करते हैं तब भी आप उसका विश्वास खो देते हैं। उसे लगेगा कि जो लोग उसकी समस्या सुन नहीं सकते वो उसका हल भी नहीं निकालेंगे। यह स्थिति, ऐसी सोच ख़तरनाक नतीजों तक भी ले जा सकती है। व्यक्ति अवसादग्रस्त हो सकता है।

अपने तनाव को साथ लेकर न चलें

कई बार परिवार में तनाव इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि हम बाहर का तनाव घर में और घर का तनाव बाहर लेकर जाते हैं। इससे परिवार और दोस्तों, सबसे दूरियां बढ़ने लगती हैं।

इसे उदाहरण से समझें…

पति को दफ़्तर का तनाव है। घर आकर भी वो उसे लेकर चिंतित है। इसके चलते वह पत्नी से ठीक से बात नहीं कर रहा या बच्चों के शोर करने पर डांट देता है। इससे होगा ये कि रोज़ इस तरह के व्यवहार के चलते पति-पत्नी में झगड़े होंगे, जिसका असर बच्चों पर पड़ेगा। परिवार का यह तनाव जब वो दफ़्तर लेकर जाएगा तो उसकी चिड़चिड़ाहट काम या सहकर्मियों पर निकालेगा। यह भी हो सकता है कि ग़ुस्सा दोस्तों पर निकल जाए। यहां रिश्ते दोनों तरफ़ से ख़राब हो रहे हैं, लेकिन तनाव वहीं का वहीं है। इसलिए तनाव को साथ लेकर चलने के बजाय उसका हल खोजें, परिवार या दोस्तों से मदद लें।

असर जो दिखता है – व्यक्ति बेचैन रहता है, बेवजह ग़ुस्सा करने लगता है, अचानक चुप हो जाता है, उसे लोगों से मिलना अच्छा नहीं लगता, वो थका-सा महसूस करता है, जल्दी-जल्दी बीमार पड़ने लगता है आदि।

मन पर असर – नींद का कम होना, ध्यान भटकना, नकारात्मक विचारों पर लगाम लगाने में मुश्किल, हरदम खोया-खोया रहना, चिंता की इंतहा, ख़ुश न हो पाना, मुस्कान तक कम हो जाना आदि।