एक समय की बात है, एक सेठ और उसका नौकर था, सेठ अपने नौकर को रोज 1000 रूपये देता था। नौकर बड़ा खुश था, वह सुबह से शाम तक सेठ के यहाँ काम करता, शाम को रूपये लेता और पूरे के पूरे रूपये खाने, पहनने और मित्रों में खर्च कर देता था और प्रसन्न रहता था। उसकी खुशी देखकर सेठ बड़ा आश्चर्य में रहता था। जबकि सेठ अपनी धन-दौलत को बढ़ाने में ही लगा रहता था, और बहुत चिंतित रहता था। नौकर का उत्साह, स्वतंत्रता और खुशी देखते देखते सेठ उससे ईश्या करने लगा। उसने मन में ठाना कि पता लगाकर रहूँगा कि इसके उत्साह, स्वतंत्रता और खुशी का कारण क्या है। उसने अन्य व्यक्ति को पता लगाने के लिये कहा। कुछ दिनों तक गौर करने के बाद उस व्यक्ति ने सेठ से कहा कि मैं इसके उत्साह, स्वतंत्रता और खुश रहने का कारण समझ गया हूँ, आप मुझे बस 99 हजार रूपये की थैली दीजिये और फिर चमत्कार देखिए। सेठ ने उसे 99 हजार रूपये से भरी थैली उसे दे दी। इस बात की खबर किसी को भी नहीं थी। उस व्यक्ति ने जब नौकर अपने घर में नहीं था उसके घर गया और 99 हजार की थैली उसके घर में रख दी।
शाम को सूर्यास्त होने को था, नौकर उसी उत्साह और प्रसन्नता से अपने घर की ओर चल दिया। जैसे ही वह घर पहुंचा उसे वह 99 हजार रूपये से भरी थैली मिली। वह बड़ी उत्सुकता के साथ उसे गिनने लगा, पर ये क्या ये तो 99 हजार हैं, उसने मन में सोचा, और फिर गिनने लगा। बार-बार गिनने के बाद जब वे रूपये 99 हजार ही निकले तो उसने सोचा कि कोई बात नहीं मैं कल मिलने वाली कमाई को खर्च नहीं करूंगा और 1 हजार मिलाकर 1 लाख कर लूंगा। एक दिन उपवास हरने में क्या हर्ज है। अगले दिन वह सेठ के यहाँ काम रकने गया, पूरे दिन काम करता रहा, इसी इंतजार में कि कब शाम होगी और 1 हजार रूपये मिलेंगे। उत्साह, स्वतंत्रता और खुशी तो कहीं गायब ही हो गई थी। शाम को सूर्यास्त के समय जैसे ही 1 हजार रूपये मिले, भागते-भागते घर पहुँचा और थैली में पूरे रूपये मिलाकर 1 लाख कर दिये। बाहर से मित्रों ने आवाज लगाई, उसने सोचा कि बताना ठीक नहीं, अंदर से ही आवाज लगाकर मित्रों के साथ जाने को मना कर दिया। भूख भी लग रही थी, पर क्या करता, समय काटने के लिये फिर थैली से रूपये निकाले और गिनने लगा। गिनते गिनते विचार आया कि क्यों न इन रूपयों से घर की मरम्मत करवा लूं, फिर सोचा कि नहीं अभी तो 1 लाख ही हैं, मै कई लाख बनाउंगा और कई नये मकान बनवाउंगा। बस यही सोचते सोचते वह ठीक से सो भी नहीं पाया और सुबह हो गई। वह उठा और काम पर चला गया। इस तरह कई दिन बीत गये, कभी ठीक से न सो पाता और न ही ठीक से खाना खा पाता। उसका उत्साह, स्वतंत्रता और खुशी जाती रही, कई बीमारियों ने उसे घेर लिया था। अब वह पूरी तरह 99 के चक्कर में पड़ चुका था।
एक दिन सेठ ने उसे बुलाया और पूछा कि न तो तुम हंसते हो, न तुम में उत्साह है, न ही खुश रहते हो और बीमार भी लग रहे हो। वह कुछ नहीं बोला। बहुत दुःखी था इसलिए सेठ ने उसकी स्थिति देखी नहीं गई, उसने अपनी सारी योजना उसे बात दी। नौकर सुनकर रह गया, अब उसकी आखें खुली। उसने सेठ जी से माफी मांगी, लेकिन सेठ ने कहा मांफी की कोई बात नही, जितना तुमने सीखा है, उससे ज्यादा तो मैंने सीखा है। जो भी व्यक्ति 99 के चक्कर में पड़ता है वह कभी खुश नहीं रह सकता। जिसके पास जितना है उसको उतनें में ही प्रसन्न रहना चाहिए।