शोध पत्र : जबलपुर में तीसरे और चौथे स्तर की माइक्रोजोनिंग की जरूरत

जबलपुर . जबलपुर में तीसरे और चौथे स्तर की माइक्रोजोनिंग करने की आवश्यकता है। 22 मई 1997 को यहां 6.2 तीव्रता का भूकंप आया था। इसके बाद वर्ष 2000 से 2004 के बीच पहले और दूसरे स्तर का माइक्रोजोनेशन कार्य किया गया। यह सीबीआरआई रुड़की, आईएमडी दिल्ली, एनजीआरआई हैदराबाद, जीएसआई जबलपुर और जेईसी जबलपुर ने मिलकर किया था। ये जानकारी स्ट्रक्चर इंजीनियर व टाउन प्लानर संजय वर्मा ने आईआईटी रुड़की में आयोजित 3 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस आईजीसी 2023 में दी। उन्होंने जबलपुर में माइक्रोजोनेशन पर तकनीकी प्रपत्र प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि इससे सिविल इंजीनियर्स को भूकंप से सुरक्षित निर्माण कार्य का मार्गदर्शन मिलेगा। इस प्रपत्र में भूगर्भीय वैज्ञानिक डॉ. एसडी पिंपरीकर का मार्गदर्शन रहा।

Research paper

ऐसे समझें माइक्रोजोनिंग

माइक्रोजोनिंग में जमीन की संरचना की जांच की जाती है। भूकंप आने पर इमारत का भविष्य काफी हद तक जमीन की संरचना पर ही निर्भर करता है। अगर भवन किसी नमी वाली सतह पर बना है तो उसे खतरा अधिक होता है। जहां मिट्टी शुष्क, बालू वाली या पत्थर की चट्टानों के साथ हो उस पर खतरा कम रहता है।

200-500 मीटर तक जमीन में ड्रिलिंग

माइक्रोजोनिंग में 200 से 500 मीटर गहराई तक जमीन में ड्रिलिंग करके मिट्टी के नमूने एकत्र किए जाते हैं। उसकी वैज्ञानिक जांच होती है। इसके बाद तय किया जाता है कि वह स्थान कितना संवेदनशील हैं। माइक्रोजोनिंग के नतीजों के आधार पर भवनों में भूकंपरोधी तकनीक इस्तेमाल की जाए तो खतरे को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है।

भवन को मजबूती देने के लिए रेट्रोफिटिंग
नर्मदा के नार्थ फॉल्ट व साउथ फॉल्ट के कारण जबलपुर भूकम्प संवेदनशील जोन-3 से जोन-4 में आ रहा है। ऐसे में यहां रिएक्टर स्केल पर 6 से ज्यादा की तीव्रता के भूकम्प आने का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में वर्तमान में निर्मित बसाहट में पुराने भवनों को मजबूती देने के लिए उनकी रेट्रोफिटिंग ही विकल्प है। टाउन प्लानर वर्मा के अनुसार इसके लिए स्ट्रक्चर में बीम, कॉलम की रिवाउंड हेमर से जांच की जाती है। इसके अलावा अल्ट्रासोनिक पल्स वेलोसिटी जांच की जा सकती है। इन जांच से भवन की मजबूती का पता लग जाता है, उसके आधार पर अत्याधुनिक तकनीक से रेट्रोफिटिंग कर भवन को मजबूती दी जा सकती है।