श्री रामजन्‍म भूमि विवाद: प्रथम अध्‍याय

श्री राम जन्‍म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद 467 वर्षों से चला आ रहा है भारत भूमि के प्रथम मुगल बाबर ने अयोध्‍या में एक राम मंदिर को ध्‍वस्‍त कर एक मस्जिद (जिसे बाबरी नाम दिया गया) बनवाई थी। यही विवाद का मुद्दा है। इतिहासकारों के अनुसार श्रीराम की पत्‍नी सीता अपने पति के लिये यहॉं भोजन बनाया करती थी, यहीं पास का वह स्‍थान सीता की रसोई कहलाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार अपने नाम के अनुरूप यह भूमि श्री राम की जन्‍म भूमि है। यहॉं श्रीराम का जन्‍म हुआ था। एक इतिहासकार ने कहा है कि ईसा से एक शताब्‍दी पूर्व महाराजा विक्रमादित्‍य ने यहॉं मंदिर बनाया था, जिसे 1100 वर्षों के बाद सन् 1033 में महमूद गजनवी के भॉंजे सालार मसूद ने नष्‍ट करने का असफल प्रयास किया। रामभक्‍तों और मसूद की सेना के बीच काफी रक्‍तपात हुआ।

1528 ई. में बाबर अयोध्‍या गया और जलालशाह नामके एक .फकीर के कहने पर उसने अपने वज़ीर मीर बांकी को राम‍मंदिर के स्‍थान पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया। प्रसिद्ध इतिहासविद कनिंघम ने लिखा है कि राम मंदिर के ध्‍वस्‍त करना, एक लाख पचहत्तर हजार हिन्‍दुओं की युद्ध में हत्‍या करने के उपरांत ही संभव हो सका था। इस रक्‍तपात के बाद हिन्‍दु भावनाओं के आवेग को नियंत्रित करने के लिये बाबर ने हिन्‍दुओं को भी वहॉं पूजा-पाठ करने की अनुमति दे दी थी। 1857 ई. तक हिन्‍दू और मुसलमान दोनों की एक साथ वहॉं आराधना किया करते थे, किन्‍तु 1857 ई. में मंदिर के घेराव के कारण, हिन्‍दू बाहर एक चबूतरा बनाकर वहॉं पूजापाठ करने लगे। तब से सन् 1992 ई. तक हिन्‍दुओं के बार-बार श्रीराम मंदिर को मुक्‍त करवाने के लिये संग्राम किया, युद्ध किये, आन्‍दोलन किये, वार्ताएँ की और अनुनय की, न्‍यायालयों में मुकदमें चलाए किन्‍तु विवाद बना ही रहा।

स्‍वतंत्रता के पूर्व विवाद एवं युद्ध

  • 1528 ई. में पंडित देवीदीन पांडेय और 1529 ई. में महारानी जयराजकुमारी एंव महेश्‍वरानंद ने मीर बांकी की सेना पर इस प्रकरण को लेकर कई हमले किये।
  • 1530 से 1556 ई. तक हुमायूँ के शासन काल में 10 युद्ध हुए।
  • 1556 से 1606 ई. तक अकबर के शासन काम में 20 युद्ध हुए। इस बीच राजा टोटरमल ने अकबर से हिन्‍दुओं को चबूतरे पर मंदिर निर्माण की स्‍वीकृति दिलवा दी।
  • 1658 से 1707 तक औरंगजेब के साथ्‍ इस विवाद को लेकर 30 युद्ध लड़े गए। धर्म युद्धों में जगदंबा सिंह, गजराज सिंह, वैष्‍णवदास एवं गुरू गोवन्‍ सिंह आदि का नाम सर्वोपरि है।
  • 1798 में 1814 ई. तक अवध के नवाब बुरहानुमुल्‍क सआदत अली खॉं के समय अमेठी के श्री गुरूदास सिंह एवं पिपरा के राजकुमार सिंह के नेतृत्‍व में 5 बार युद्ध हुए।
  • 1814 से 1836 ई. तक सआदत अली के पुत्र नवाब नासिरूद्दीन हैदर के शासन काल में तीन युद्ध हुए।
  • अवध के नावाब वाजिद अली शाह के समय में 1853 से 1856 ई. के बीच दो युद्ध हुए, जिनमें पहले का नेतृत्‍व हनुमानगढ़ी के बाबा उद्धवदास, श्री रामचरण दास एवं गोंडा नरेश देवीबख्‍श सिंह ने केया।
  • वाजिद अली शाह पहले व्‍यक्ति थे, जिन्‍होंने इस पुराने विवाद के समाधान के लिये एक हिन्‍दू, एक मुसलमान और एक अंग्रेस, तीन व्‍यक्तियों की समिति बनाई थी। यह दुर्भाग्‍य पूर्ण है कि मुसलमानों के नवाब वाजिद अली शाह के इस प्रयास को स्‍वीकार नहीं किया।
  • कहा जाता है कि 1857 ई. को गदर के समय अंग्रेजों के खिलाफ हिन्‍दू मुसलमानों ने जब मिलकर लड़ाई लड़ी, तो मुसलमानों के नेता अमीर अली ने फैज़ाबाद के मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा, ‘फर्जे इलाही हमें मजबूर करता है कि हिन्‍दुओं के खुदा रामचंदर जी की पैदाइशी जगह पर जो मस्जिद बनाई गई है, उसे हम बाखुशी हिंदुओं के सुपुर्द कर दें, क्‍योंकि वही हिन्‍दू-मुस्लिम नाइत्‍तफाकी की सबसे बड़ी जड़ है।‘ अमीर अली को अंग्रेजों ने फॉंसी पर चढ़ा दिया।
  • 1912 से 1934 तक दो बार मस्जिद पर हिन्‍दू आक्रमण हुए, जिसके बाद इस बार-बार की लड़ाई से कर कर अनेक मुसलमानों ने अयोध्‍या छोड़ दिया।
  • कई लेखों के अनुसार कुल 76 आक्रमणों में 3 लाख 75 हजार हिन्‍दुओं ने अपनी वलि दी।

स्‍वतंत्रता के बाद विवाद (1991 ई. तक)

  • 22 एवं 23 दिसंबर 1949 ई. की मध्‍यरात्रि में मस्जिद के मुख्‍य ढॉंचे के नीचे श्री रामलमा की मूर्ति की विधिवत् प्रतिष्‍ठा एवं स्‍थापना कर दी गई।
  • फैजाबाद के सिविल जज ने 16 जनवरी 1950 ई. को अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करके केन्‍द्रीय गुबंद के नीचे स्‍थापित श्री रामलला की मूर्ति हटाने एवं पूजन-अर्चन के हस्‍तक्षेप पर रोक लगा दी।
  • इसके विरूद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुसलमानों द्वारा की गई अपील को 30 मई 1950 को खारिज कर दिया गया। तक से अब तक उपर्युक्‍त स्‍थान पर श्री रामलमा की मूर्ति स्‍थापित, प्रतिष्ठित एवं पूजित है।
  • 1955 में पुलिस बल ने शांति व्‍यवस्‍था कायम रखने के लिये मूर्ति को सींखचों के अंदर बंद कर दिया, लेकिन बाहर से ही पूजन अर्चन का क्रम चलता रहा।
  • यह एक महत्‍वपूर्ण सत्‍य तथ्‍य है कि 1934 से 1992 तक उक्‍त स्‍थान पर किसी मुसलमान ने नमाज नहीं पढ़ी और यह पूर्णत: हिन्‍दुओं के कब्‍जे में रहा। इस बीच कई मुकदमें इलाहाबाद हाईकोर्ट में हिन्‍दुओं व मुस्लिमों द्वारा दायर यिक गए।
  • 1984 में नई दिल्‍ली धर्म संसद के राष्‍ट्रीय अधिवेशन में 528 संतों ने सर्वसम्‍मति से श्री राम जन्‍मभूमि की मुक्ति का निर्णय लिया एवं 25 दिसंबर 1984 को सीतामढ़ी बिहार से श्रीराम जानकी रथयात्रा प्रारंभ हुई, जो 20 मार्च 1984 को पचास हजार रामभक्‍तों के बलिदानी संकल्‍प से साथ पूरी हुई।
  • 21 अक्‍टूबर 1985 को उड़प्‍पी में धर्म संसद के दूसरे अधिवेशन में श्री राम जन्‍म भूमि मुक्ति के प्रस्‍ताव को पुन: दोहराया गया।
  • 1 फरवरी 1983 को फैजाबाद के न्‍यायालय के निर्णय पर द्वारा खोला गया। इसके बाद मंदिर निर्माण हेतु श्री रामजन्‍म भूमि न्‍यास का गठन हुआ।