MP High Court: आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन दायर करने के लिए आत्म समर्पण आवश्यक नहीं, हाईकोर्ट का आदेश

MP High Court: जबलपुर हाईकोर्ट ने कहा, आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन दायर करने के लिए आत्मसमर्पण आवश्यक नहीं है। सीआरपीसी की धारा- 397 के तहत पुनरीक्षण आवेदन पर विचार करने पर कोई रोक नहीं है।

जबलपुर हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट ने अहम आदेश में कहा है कि आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन दायर करने के लिए आवेदक को आत्मसमर्पण करना आवश्यक नहीं है। एकलपीठ ने अपने आदेश में सीआरपीसी की धारा-397 के तहत पुनरीक्षण आवेदन पर विचार करने पर कोई रोक नहीं है।

निचली अदालत द्वारा पारित फैसले पर अधिवक्ता किसी अनौचित्य या अवैधता को इंगित करने में सक्षम है तो उच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र और पुनरीक्षण की शक्तियों का उपयोग करके रिकॉर्ड मंगवा सकता है। उच्च न्यायालय सजा के निष्पादन या निलंबित करने का आदेश जारी कर सकता है।याचिकाकर्ता संजय नगाइज की तरफ से उक्त आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। याचिका में अपील की सुनवाई के दौरान निचली अदालत द्वारा सजा में बढोतरी किए जाने को चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया कि सजा बढ़ाने के संबंध में नोटिस जारी करना आवश्यक है। अपील का नोटिस और सजा बढ़ोतरी का नोटिस एक ही नहीं है। सीआरपीसी की धारा-397 के तहत निचली अदालत द्वारा पारित आदेश के खिलाफ आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर करने आत्मसमर्पण करना आवश्यक नहीं है।

एकलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए अपने आदेश में मद्रास हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा-397(1) में उल्लिखित शब्द सजा या आदेश के निष्पादन को निलंबित करने के निर्देश को शब्दों से अलग पढ़ा जाना चाहिए। यदि अभियुक्त कारावास में है तो वह रिकॉर्ड की जांच होने तक जमानत पर या उसके बांड पर रिहा करने तथा सजा निलंबित करने की शक्ति पुनरीक्षण अदालत को देता है। एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को जमानत का लाभ प्रदान करने हुए 50 हजार का व्यक्तिगत बांड न्यायालय में प्रस्तुत करने के आदेश जारी किए हैं।